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दादरी मौत पर सियासत बदस्तूर जारी है !देश में तमाम हिन्दू या अन्य समुदाय के लोग दंगा का शिकार होते या भीड़ का लेकिन उन्हें न कोई सम्मान जनक मदद मिलती है और न ही सम्मान जनक लोगो का साथ और देश की सभी सेक्युलर मिडिया भी हिन्दुओ की घटनाओ को उतना तवजो नही देती है जितना एक अल्संख्यक को देती है शायद इसलिए एकलाख को अंतर राष्ट्रिय पहचान और सहानुभूति मिल गयी व् मिल रही है वही अन्य परिवारों को केवल उपेक्षा ही हासिल हुई !क्या यही धर्म निरपेक्षता है ?
अब बात जरा देश की लेखको की करते है हिंदी कवि और आलोचक अशोक वाजपेयी ने दादरी में बीफ़ की अफ़वाह को लेकर हुई हिंसा पर ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्पी’ पर सवाल उठाया है और साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने का फैसला किया है वही पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की भांजी नयनतारा सहगल ने भी ‘प्रधानमंत्री की चुप्पी’ पर सवाल उठाया और अपना पुरस्कार लौटा दिया !
एक ने २० साल बाद और दुसरे ने ३० साल बाद साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाया है सोचिये क्या इस दौरान कोई हादसा या दंगा नहीं था !
दोनों लोगो की एक ही समस्या दिखती है वह है प्रधानमत्री नरेन्द्र मोदी वह नरेन्द्र मोदी जिसके कार्यकाल में अपना देश विश्व भर में आज सम्मान जनक स्थिति में है यह लोग हर चीज पर नरेन्द्र मोदी का ब्यान चाहते है जिससे वह संकीर्ण राजनीती कर सके जब मोदी जी ने स्पस्ट किया है की उनका एक ही विज़न है सबका साथ सबका विकास और वह उसपर अभी तक कायम है !
सीरिया ,इराक पकिस्तान, अरब और तालिबान में नजाने कितने मुस्लिमो की बर्बरता से हत्या कर दी जा रही है यहाँ तक मासूम छोटे छोटे बच्चो की भी और कितने औरतो की अबरू लूट कर मार दे रहे है लेकिन विदेशी मिडिया , विदेशी संस्थानों,अंतर राष्ट्रिय मानवधिकार आयोग और ओबामा को कुछ नही दिख रहा है लेकिन हिन्दुस्तान में एक एकलाख हादसे का शिकार हो गया जिसपर हिंदुस्तान का कानून अपना काम ईमानदारी से कर रहा है फिर भी मानो क़यामत आ गयी !पूरी दुनिया में हलचल मच गया !तमाम विदेशी मिडिया विधवा विलाप करने लगी !हिन्दुस्तान में मुस्लिम सुरक्षित नहीं है और हिन्दुओ ने एक मुस्लिम को मारा !अरे नासमझो हिंदुस्तान एक लोकतांत्रित देश जिसका एक संविधान भी है जिसपर देश के सभी राष्ट्रवादियो को ऐतबार है और रही बात हिन्दुओ की तो यह हिन्दू ही थे जी एकलाख को अस्पताल ले गए और अपने पैसो से उसका इलाज करवाए !आज भी पूरा हिन्दू परिवार एकलाख के परिवार की मदद कर रहा है !यह तुम पेड मिडिया की कुछ नहीं दिखेगा न ही देश के साहित्य कारो ,राजनीतिको और दलाल देशी मिडिया को कुछ दिखेगा !उन्हें तो किसी न किसी रूप में नरेन्द्र मोदी को अपमानित करना है या उन्हें केंद्र में लेकर सांप्रदायिक करण करना है !
देश के कथाकथित सेक्युलर राजनीतिको को देश के संविधान और सम्मान का ध्यान देना चाहिए क्योंकि यह देश गैरो को अपनाता आया है तो अपने देश के नागरिको को कैसे पराया कर देगा !जो विदेशी मिडिया या संस्था को दर्द हो रहा है वह कुछ दिन सीरिया .इराक, पाकिस्तान, अरब और तालिबान में बिताये और वहा की मुस्लिमो की मदद करे !हिन्दुस्तान की चिंता न करे यह एक लोकतांत्रित देश है और वह अपने नागरिको की सुरक्षा देने और करने में सक्षम है !
अशोक वाजपेयी ललित कला अकादमी के पूर्व अध्यक्ष है जिन्हें 1994 में उनके पुस्तक कहीं नहीं वहीं (काव्य) के लिए साहित्य अकादेमी अवार्ड दिया गया !ध्यान रहे यह कांग्रेस की सरकार थी !
नयनतारा सहगल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्पी को लेकर परेशान हैं!नयनतारा सहगल को ये पुरस्कार उनकी पुस्तक ‘Rich Like Us’ के लिए 1986 में तब मिला था, जब उनके भतीजे राजीव गांधी देश क प्रधानमंत्री थे.
सवाल ये उठता है आखिर नयनतारा सहगल को उस वक्त ये पुरस्कार लेने में झिझक क्यों नहीं हुई, खास तौर पर उस प्रधानमंत्री के रहते हुए, जिसकी मां और नयनतारा की ममेरी बहन, इंदिरा गांधी की मौत के बाद दिल्ली सहित देश के कई हिस्सों में संगठित तौर पर कांग्रसी नेताओँ की अगुआई में हजारों सिखों को मारा गया. मोदी तो दादरी में अखलाक की हत्या के बाद चुप हैं, इसे लेकर नयनतारा परेशान हैं, लेकिन 1984 में तो उनके भतीजे और तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने सिखों की दंगे में हुई हत्या को सामान्य और न्यायोचित ठहराते हुए ये विवादास्पद बयान दिया था कि बड़ा पेड़ गिरता है, तो कंपन तो होता ही है. दिल्ली के सिख दंगों में मारे गये लोगों के परिवार आज भी न्याय के लिए भटक रहे हैं. नयनतारा सहगल की अंतरात्मा को शायद इससे कोई परेशानी नहीं हुई थी!
जो काम उसके बाद न तो नयनतारा की ममेरी बहन इंदिरा गांधी कर सकीं और न ही उसके बाद के प्रधानमंत्री, वो काम सुप्रीम कोर्ट ने शाहबानो मामले में अपने फैसले के तहत कर दिया था. 23 अप्रैल 1985 के अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने शाहबानो केस को लेकर अपना फैसला सुनाया, जिसमें मुस्लिम महिलाओं को उचित भरण-पोषण का अधिकार सुनिश्चित किया गया. दरअसल ये वही अधिकार था, जिसे अपनी बहन विजयालक्ष्मी को दिलाने के लिए नेहरु ने हिंदू कोड बिल को तीन दशक पहले पास कराया था. लेकिन नेहरु के अपने पोते, नयनतारा के भतीजे और देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने तब तक मजबूत हो चुके मुस्लिम वोट बैंक को अपनी तरफ करने के चक्कर में संविधान संशोधन के जरिये सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया. ध्यान रहे कि राजीव गांधी ने ये विवादास्पद काम 1986 में किया, ये वही वर्ष था जब नयनतारा सहगल ने बड़ी प्रसन्नता के साथ साहित्य अकादमी पुरस्कार स्वीकार किया.
नयनतारा की अंतरात्मा को तब भी कोई परेशानी नहीं हुई, जब राजीव गांधी ने मुस्लिम कट्टरपंथियों के आगे झुकते हुए शाहबानो मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को संवैधानिक संशोधन के तहत उलट दिया था और एक मुस्लिम महिला को उसका वाजिब हक मिले, इसमें सबसे बड़ा अड़ंगा लगाया था.
सवाल यहाँ नरेन्द्र मोदी की चुप्पी का नहीं है और न ही एकलाख की मौत का है यहाँ साजिस यह की जा रही की देश की गरिमा को कैसे नरेन्द्र मोदी का नाम लपेट कर सांप्रदायिक रूप से विश्व भर में गिराया जाये !क्या देश में कोई पहली बार हादसे का शिकार हुआ है नजाने कितने हिन्दू रोज मार दिए जाते है जिनकी गिनती करना मुस्किल है उन्हें सम्मान देना या पूछना दूर की बात है !ऐसे में एकलाख की मौत को अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बनाना क्या एक साजिस नही है क्योंकि मौत तो हिन्दू की भी होती है उसपर इतना हल्ला क्यों नहीं मचता है उसपर लोगो का ध्यान क्यों नहीं जाता है उसकी मौत को क्यों नहीं अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बनाया जाता है उसकी मौत पर मिडिया में चर्चा क्यों नही किया जाता है और उसकी मौत पर देश के कथाकथित सेक्युलर राजनेता अपनी संवेदना क्यों नही दिखाते है ? क्या हिन्दू इंसान नही होता है या हिन्दू का परिवार नहीं होता है ?
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